Monday, April 15, 2024

"दुर्गाष्टमी: मां दुर्गा के समर्पण और धार्मिक उत्सव का महत्व"

दुर्गाष्टमी का त्योहार हिन्दू धर्म में मां दुर्गा को समर्पित है और इसे नवरात्रि के आठवें दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है और लोग उनके शक्ति और प्रेरणा की कथाओं को सुनते हैं। यह त्योहार विशेषकर उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दुर्गाष्टमी का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन मां दुर्गा ने रक्तबीज राक्षस का वध किया था। उन्होंने नवदुर्गा के रूप में अष्टमी के दिन रक्तबीज का वध किया था और अपने भक्तों को रक्षा के लिए उनकी शक्तियों का प्रदर्शन किया था। दुर्गाष्टमी को उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोग मां दुर्गा के मंदिरों में जाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, और भजन-कीर्तन का आनंद लेते हैं। बड़े-बड़े मेले लगते हैं और लोग विभिन्न खास खाने का आनंद लेते हैं। इस दिन कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें लोग भगवान राम के जीवन के अनुसार नाटक देखते हैं। इस दिन के त्योहार की धूमधाम से धूमधाम से मनाने के बाद, लोग अपने घरों में प्रसाद तैयार करते हैं और अपने परिवार के साथ इसे साझा करते हैं। धर्मिक कार्यक्रमों के साथ-साथ, इस दिन के त्योहार पर लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और एक-दूसरे के साथ खुशियों का आनंद लेते हैं। इस रूप में, दुर्गाष्टमी का त्योहार मां दुर्गा की शक्ति और साहस को याद करने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है। इस दिन को भक्ति, आनंद, और परिवार के साथ मनाना बहुत ही सार्थक और आनंदमय होता है।
दुर्गाष्टमी: मां दुर्गा के समर्पण और धार्मिक उत्सव का महत्व
दुर्गा अष्टमी की आरती जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
 तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ 
 ओं जय अम्बे गौरी॥ 
 माँग सिंदूर विराजत, तिको मृगमद को। 
उज्ज्वल से दोई नैना, चारू भुवन को॥ 
चंद्र सोहती है, मुख महाविशाला। 
नंदिनी वृद्धि को, तुही ब्रह्म जी को॥
 मां आरती कीजें। जो कोई नर गाता।
 उर आनंद समाता, पाप घर जाता॥ जय अम्बे गौरी॥ 
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भर्ता। 
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति कर्ता॥ 
भूजा चर अट चतुर्भुजा, दश भुजा धारी।
 रिपुदलभ भवानी, सुहासिनी भवानी॥
 कनक मणि के तारा, राजत बटो राजे। 
कोटि रतन की जय जो कोई, जो मंगलधारे॥ 
जय अम्बे गौरी॥ शुंभ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती। 
धूम्र विलोचन नैना निशदिन माधाती॥ 
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमलानी। आगम निगम बखानी,
 तुम शिवपत्नी॥ चौंसट योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरू। 
मन चंगा विश्वधारी, धन्य धन्य भारती॥
 जय अम्बे गौरी॥ तुम्हे निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी। माता जी, माता जी, माता जी॥ ________________________________________

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